जिन्हें मैं मील का पत्त्थर
समझ कर पूजता था और
जिनके पास पहुँचने के लिए
दुर्गम रास्ते चला मैं
पर आज वो छूट गए हैं पीछे
खड़े हैं खँडहर से –
मुखर महत्वपूर्ण मानक थे
अब हैं मूक –
क्योंकि -
जिंदगी आगे बढती गई है
नए मानकों को गढ़ती गई है
रास्ते को अकेलापन भी है
डर भी, भूतकाल की चिताएं
धू-धू कर के जल रहीं हैं
शव के अवशेष –
हड्डियाँ, गर्म राख,
अधजली लकड़ियाँ,
श्मशान-वैराग्य लिए
घर लौटते स्वजन, परिजन –
रास्ता भी लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ
और आगे बढ़ता हुआ मग्न
और चौराहे पर खड़ा मैं –
धीरे-धीरे लोग अजनबी होते जा रहे हैं !
मील का पत्त्थर और आगे हैं
शायद दूर, बहुत दूर
फिर भी चलना तो पड़ेगा ही
गति से ही गंतव्य है !
समझ कर पूजता था और
जिनके पास पहुँचने के लिए
दुर्गम रास्ते चला मैं
पर आज वो छूट गए हैं पीछे
खड़े हैं खँडहर से –
मुखर महत्वपूर्ण मानक थे
अब हैं मूक –
क्योंकि -
जिंदगी आगे बढती गई है
नए मानकों को गढ़ती गई है
रास्ते को अकेलापन भी है
डर भी, भूतकाल की चिताएं
धू-धू कर के जल रहीं हैं
शव के अवशेष –
हड्डियाँ, गर्म राख,
अधजली लकड़ियाँ,
श्मशान-वैराग्य लिए
घर लौटते स्वजन, परिजन –
रास्ता भी लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ
और आगे बढ़ता हुआ मग्न
और चौराहे पर खड़ा मैं –
धीरे-धीरे लोग अजनबी होते जा रहे हैं !
मील का पत्त्थर और आगे हैं
शायद दूर, बहुत दूर
फिर भी चलना तो पड़ेगा ही
गति से ही गंतव्य है !
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