कहाँ जाना है ?
किधर?
कौन से गाँव ?
कौन सा शहर ?
घूमते घुमाते
बस चलते ही जाना है !
स्थिर होने पर भी
विचारों के साथ !
पान बनवाने गया था
कल ही की तो बात हो जैसे,
लोग आए थे, बाबूजी ने भेजा था
ट्रेन में बैठा था अडयार जा रहा था
सोचा यहाँ तक आ गया
तो वहां भी धूम लूँ !
एक कमरे में बैठा हूँ
वारुणी नदी के किनारे
राजघाट बनारस में
अँधेरा आ सन्नाटों के बीच
दरवाजे पर दस्तक होती है
एक बुजुर्ग महिला है कुछ पूछ रहीं हैं
सारनाथ जाना है, घूमने आईं हैं
विदेश से इस देश की मिटटी
ले जायेगीं, नदी के तट से,
अपने मूर्तिकार मित्र के लिए
मैं सोचता रहा कैसी कल्पना है
कैसा प्रेम धरती से, माटी से
हम सारनाथ गए साथ साथ
अचानक एक कार्ड देख कर
याद आया, फिर लौटने के बाद
मैंने कृष्णमूर्ति का ऑडियो कैसेट
ख़रीदा था बाबूजी के लिए,
बाबूजी ने तो दिया था
कृष्णमूर्ति की जीवनी
जो मैरी लुटयंस ने लिखा था
पढ़ रहा हूँ बैंगलोर से अडयार जाते वक्त
बस में वो छोटा बच्चा
अपनी माँ की गोद में बैठा
मेरी तरफ बार-बार हाथ
बढ़ा रहा था, मोहक था दृश्य
वहां खरीदी मैंने एक छोटी सी गीता
ऐनी बेसेंट ने लिखी थी उसकी भूमिका
बड़े बरगद के नीचे बैठा अकेला,
बरसों से बरगद एक ही जगह खड़ा था
अपनी शाखाओ के साथ, मुझे पता था
पता था पटना आना है लौट कर
लेकिन अब फिर कहाँ जाना है
ये नहीं पता था !
किधर?
कौन से गाँव ?
कौन सा शहर ?
घूमते घुमाते
बस चलते ही जाना है !
स्थिर होने पर भी
विचारों के साथ !
पान बनवाने गया था
कल ही की तो बात हो जैसे,
लोग आए थे, बाबूजी ने भेजा था
ट्रेन में बैठा था अडयार जा रहा था
सोचा यहाँ तक आ गया
तो वहां भी धूम लूँ !
एक कमरे में बैठा हूँ
वारुणी नदी के किनारे
राजघाट बनारस में
अँधेरा आ सन्नाटों के बीच
दरवाजे पर दस्तक होती है
एक बुजुर्ग महिला है कुछ पूछ रहीं हैं
सारनाथ जाना है, घूमने आईं हैं
विदेश से इस देश की मिटटी
ले जायेगीं, नदी के तट से,
अपने मूर्तिकार मित्र के लिए
मैं सोचता रहा कैसी कल्पना है
कैसा प्रेम धरती से, माटी से
हम सारनाथ गए साथ साथ
अचानक एक कार्ड देख कर
याद आया, फिर लौटने के बाद
मैंने कृष्णमूर्ति का ऑडियो कैसेट
ख़रीदा था बाबूजी के लिए,
बाबूजी ने तो दिया था
कृष्णमूर्ति की जीवनी
जो मैरी लुटयंस ने लिखा था
पढ़ रहा हूँ बैंगलोर से अडयार जाते वक्त
बस में वो छोटा बच्चा
अपनी माँ की गोद में बैठा
मेरी तरफ बार-बार हाथ
बढ़ा रहा था, मोहक था दृश्य
वहां खरीदी मैंने एक छोटी सी गीता
ऐनी बेसेंट ने लिखी थी उसकी भूमिका
बड़े बरगद के नीचे बैठा अकेला,
बरसों से बरगद एक ही जगह खड़ा था
अपनी शाखाओ के साथ, मुझे पता था
पता था पटना आना है लौट कर
लेकिन अब फिर कहाँ जाना है
ये नहीं पता था !
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