रविवार, 29 नवंबर 2015

क्या मृत्यु जीवन का विस्तार है ?


मैं रात में जल्दी सोता हूँ, सुबह जल्दी उठता हूँ l कल रात नींद नहीं आ रही थी l कारण, शायद एक बहुत ही आदरणीय घनिष्ट से शाम को फ़ोन पर बात-चीत और उनका बहुत बृद्ध होना और पल-पल कमजोर होना, निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ते जाना कहीं मेरे अंतस मन में बैठ गया था l फिर मैं तकिये के बगल में रखी डायरी और कलम लेकर लिखने लगा और ये कविता कागज पर उतर आई l मेरी ज्यादातर कविताएँ ऐसी ही आती हैं; सुबह उठने पर जिस भाषा में विचारों का प्रवाह आता है; भोजपुरी, अंग्रेजी या हिंदी में उसको मैं तुरत डायरी में लिख लेता हूँ या टाइप कर देता हूँ l हो सकता हो ये भाव मेरे मन में कई वर्षों से हों लेकिन कल रात इनको मौका मिला बाहर निकलने का ! फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के हीरामन की तरह हम सभी एक बार जरूर सोचते होंगे जीवन के औचित्य के बारे में l 
आरम्भ से जीवन का धीरे-धीरे एक बिंदु से वृत्त बन जाना, फिर मृत्यु हम सभी को निराकार कर देती है l उसके बाद क्या है ? क्यों है ऐसा ? क्या प्रयोजन है ? प्रकृति को पता हो सकता है, मानव को नहीं क्योकि प्रकृति मानव के ज्यादा शक्तिशाली है l पतझड़ के समय पत्तों का मौन इंगित करता है मनुष्य के जीवन के अंत का भी जिसके बारे में किसी को भी नहीं पता है l उसके बाद अन्धकार ही अन्धकार है !
विस्तार 
1.
एक सूक्ष्म बिन्दु, मुक्त-उन्मुक्त-अरूप-
बढ़ते-बढ़ते-बनते-बिगड़ते, हँसते-खेलते 
लहरों की पतवार ले, डूबते-उतराते
फैलते-फैलाते बन जाता है-
बाहर आना आसान नहीं होता,
अंतर्यात्रा नियति है मानो, न मानो 
फिसलते-जूझते-गिरते-पड़ते वातावर्त से
और रूप अचानक एक दिन हो जाता है
जड़, निष्प्राण, निरर्थक 
(दीवारो पर टंगा हुआ) 
विदेह और निराकार !
2.
क्यों ? किसलिए ? 
शाश्वत प्रश्न है 
निरूत्तर करता हुआ 
सदियों की जिज्ञासा को
लेकिन शायद पत्तियों को पता है 
वायु को इसकी भनक है 
जमीन और जल को जानकारी है 
क्यों, कहाँ और कब होगी वर्षा 
और कब पड़ेगा सूखा 
प्रलय में होगें कितने विलीन 
कितने होगें बेघर, शांत सागर में 
कितनों की किश्तियाँ डूबेगीं !
3.
और पत्तियों को पता है-
धरती पर मौन पड़े 
उनके मुस्कान का पीलापन 
देता है संकेत
मृत्यु के किए गए 
विस्तार का 
बिन्दु से वृत्त का 
वृत्त से निराकार का 
बस इतना ही है 
इसके आगे है अन्धकार 
से प्रकाशित वह मार्ग 
जिसपर स्वयं चलना है 
विज्ञान और शास्त्रों का ज्ञान 
प्रज्वलित नहीं करता एक दीप भी 
राह में उस द्वीप के !

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