तुम एक शरीर नहीं हो सकते
आत्मा भी नहीं
शरीर का दुःख जिसने झेला है
शरीर का सुख जिसने भोगा है
मुखमंडल पर उतरा हुआ दर्प
समय के धामिन सांप ने पैरो को जकड लिया
आगे बढ़ना ही है - लेकिन कितना आगे !
रूप-अरूप , व्यक्त-अव्यक्त का झमेला
तुमने ही खड़ा किया है
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