वक़्त के सर्द लम्हों से ग़र हो तुम्हारी मुलाक़ात/ तो उन्हें हँस के, फ़ख़्र से, ग़र्मजोशी से गले लगा / अलाव के घेरे की बैठकी के हमनवा वे न भी हो / ग़र तुम्हारे सब्र के उस्ताद-ए -हर्फ़ न भी हों / तो तुम उन्हें अपने तब्दील- ए -वक़्त का सिला तो दे ।
@anilprasad
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