गुरुवार, 27 जनवरी 2022

बहुत दिनों के बाद दिखी धूप
और 
बालकनी का दरवाज़ा हल्की 
अँगड़ाई
लेकर कुंडे से कहा 
कह दो 
उन्हें जो सोफ़े पर ठण्ड
ओढ़ कर 
बैठे हैं ज़रा गर्म हो लें 
कल 
आसमान में आफ़ताब हो न हो 
मैं मुस्कुराया और बालकनी में आया 
और 
बाहर की हवा ने तल्ख़ी-ए- अय्याम से कराया रू-ब-रू 
और 
मैं ख़ामोश हो गया -
आफ़ताब 
को भी ऊँची इमारतों के पीछे 
ढलती हुई 
शाम ने आग़ोश में ले लिया था । 

@anilprasad
27.01.2021

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