बहुत दिनों के बाद दिखी धूप
और
बालकनी का दरवाज़ा हल्की
अँगड़ाई
लेकर कुंडे से कहा
कह दो
उन्हें जो सोफ़े पर ठण्ड
ओढ़ कर
बैठे हैं ज़रा गर्म हो लें
कल
आसमान में आफ़ताब हो न हो
मैं मुस्कुराया और बालकनी में आया
और
बाहर की हवा ने तल्ख़ी-ए- अय्याम से कराया रू-ब-रू
और
मैं ख़ामोश हो गया -
आफ़ताब
को भी ऊँची इमारतों के पीछे
ढलती हुई
शाम ने आग़ोश में ले लिया था ।
@anilprasad
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