ग़र कोई है मेरे पीछे -
तो वो तुम हो - और इसके सिवाय
बस ग़म है - खोलता हूँ
सफ़हा सफ़हा तुम्हें
हर्फ़-बा-हर्फ़
सतरे सतरे हमराह तुम
लब-बंद आवाज़ कोई तुमसे सीखे
सदियों की सदाएँ सुनाई देती है
अहसास की लौ पर तुम्हारे साथ
जैसे इस सर्द फ़ज्र में
तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लिए
क़िल्लत -ए -वक़्त से मैं ग़मज़दा हूँ
और
तुम्हारी नर्म-गर्म तासीर मुझे
मुस्कुराने पर मजबूर कर देती है !
@anilprasad
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