शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

ग़र कोई है मेरे पीछे -
तो वो तुम हो - और इसके सिवाय 
बस ग़म है - खोलता हूँ
सफ़हा सफ़हा तुम्हें 
हर्फ़-बा-हर्फ़
सतरे सतरे हमराह तुम 
लब-बंद आवाज़ कोई तुमसे सीखे
सदियों की सदाएँ सुनाई देती है 
अहसास की लौ पर तुम्हारे साथ 
जैसे इस सर्द फ़ज्र में 
तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लिए 
क़िल्लत -ए -वक़्त से मैं ग़मज़दा हूँ 
और 
तुम्हारी नर्म-गर्म तासीर मुझे 
मुस्कुराने पर मजबूर कर देती है ! 
@anilprasad 
29.01.2021

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