एक दिन मैंने पर्वत से पूछा,
क्या तुम कविता लिखते हो ?
हाँ हमेशा, अगर तुम पढ़ सको तो
मेरी कविता पढने के लिए
तुम्हें अक्षरों की ज़रुरत नहीं है
बृक्षों,से घिरे और हिम मण्डित
मेरे मुख को देखो,
मेरे ह्रदय से निकलते
झरनों का राग सुनो
और महसूस करो !
क्या तुम कविता लिखते हो ?
हाँ हमेशा, अगर तुम पढ़ सको तो
मेरी कविता पढने के लिए
तुम्हें अक्षरों की ज़रुरत नहीं है
बृक्षों,से घिरे और हिम मण्डित
मेरे मुख को देखो,
मेरे ह्रदय से निकलते
झरनों का राग सुनो
और महसूस करो !
एक दिन मैंने नदी से पूछा,
क्या तुम कविता लिखती हो?
नहीं मैं कविता लिखती नहीं
करती हूँ, बैठ जाओ और सुनो
बहती हुई मेरी धाराओ को l
क्या तुम कविता लिखती हो?
नहीं मैं कविता लिखती नहीं
करती हूँ, बैठ जाओ और सुनो
बहती हुई मेरी धाराओ को l
एक दिन मैंने आकाश से पूछा,
क्या तुम भी कविता करते हो ?
उसकी हँसी, चमक, रूदन,
बादलों के गगन-गर्जन
और सात रंगों में
लय था, प्रलय था
निस्सीम शांति का राग भी था l
क्या तुम भी कविता करते हो ?
उसकी हँसी, चमक, रूदन,
बादलों के गगन-गर्जन
और सात रंगों में
लय था, प्रलय था
निस्सीम शांति का राग भी था l
एक दिन मैंने वायु से पूछा,
तुम कैसे कविता कर सकते हो ?
क्यों ? मैं ही तो आदिकवि हूँ
मेरे बीना पर्वत, नदी आकाश
मूक हैं, मैं ही उनकी वाणी हूँ
मैं ही हूँ उनकी कल्पना का प्राण
अगर तुम्हे विश्वास नहीं तो
चिड़ियों से पूछ कर देखो !
तुम कैसे कविता कर सकते हो ?
क्यों ? मैं ही तो आदिकवि हूँ
मेरे बीना पर्वत, नदी आकाश
मूक हैं, मैं ही उनकी वाणी हूँ
मैं ही हूँ उनकी कल्पना का प्राण
अगर तुम्हे विश्वास नहीं तो
चिड़ियों से पूछ कर देखो !
एक अकेली बैठी हुई
चिड़िया से मैंने पूछा,
उसने कहा धरती से पूछो l
चिड़िया से मैंने पूछा,
उसने कहा धरती से पूछो l
धरती से पूछा,
उसने कहा पत्तियों से पूछो l
उसने कहा पत्तियों से पूछो l
पत्तियों से पूछा,
उन्होंने कहा कलियों से पूछो l
उन्होंने कहा कलियों से पूछो l
कलियों से पूछा
कलियों ने कहा
वर्षा की बूंदों से पूछो l
कलियों ने कहा
वर्षा की बूंदों से पूछो l
वर्षा की बूंदों ने हँस कर कहा,
सुनो जब वर्षा हो रही हो
और तुम्हेँ भींगने का मन करे
उसी दिन तुम्हेँ
उत्तर मिल जाएगा !
सुनो जब वर्षा हो रही हो
और तुम्हेँ भींगने का मन करे
उसी दिन तुम्हेँ
उत्तर मिल जाएगा !
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