रविवार, 19 अप्रैल 2015

समय में बंधा

कल देखा बैठे बैठे 
विमानों को 
बादलों में 
ओझल होते
समय 
जो बिताना था: 
एक उडान 
और दूसरी उड़ान 
के बीच का 
समय,
जो 
असमर्थ था 
तेजी से 
उड़ने में 
घोंघा-चाल से 
चल रहा था 
अनवरत 
अदृश्य 
समय में 
बंधा
समय में बंधे 
हम 
पहुँच 
ही जाते हैं 
अपने अपने 
गंतव्य 
बादलों में छिपी 
चिंता की रेखाओं 
को अपने 
मन में संजोये
जमीन से 
आकाश में 
आकाश से 
जमीन पर 
की उड़ान 
और दूरी 
समय ही 
तय करता है
मुझे ऐसा लगा 
आप क्या सोचतें हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें